गुरु महाराज की पुण्य तिथि के अवसर पर हुआ धर्म का आयोजन

गुरु महाराज की पुण्य तिथि के अवसर पर हुआ धर्म का आयोजन

गुरु महाराज की पुण्य तिथि के अवसर पर हुआ धर्म का आयोजन

गुरु महाराज की पुण्य तिथि के अवसर पर हुआ धर्म का आयोजन

घर व प्रतिठानों पर संतों का अचरण डलवाने से होता है चमत्कार- रविन्द्र जैन

यमुनानगर, 24 अप्रैल (आर. के. जैन):
एस. एस. जैन सभा के सौजन्य से जैन स्थानक के सभागार में संघ शासता पूज्य गुरु देव श्री सुदर्शनलाल जी महाराज की पुण्य तिथि के अवसर पर एक धर्म सभा का आयोजन किया गया। स्थानक के अध्यक्ष जे. पी. जैन ने बताया कि महाराज श्री का जन्म बैसाख बदी तृीतया को 4 अप्रैल 1923 में हुआ था। उन्होंने बताया कि रोहतक निवासी श्री चन्दगी राम जी एडवोकेट के यहां माता सुन्दरी देवी ने जन्म दिया। 18 जनवरी 1942 में संगरूर में इनकी दिक्षा हुई और इनके गुरु व्याख्यान वाचस्पति गुरुदेव श्री मदनलाल जी महाराज व गुरु भाई बाबा श्री जग्गूमल जी महराज, तपस्वी श्री बद्री प्रसाद जी महाराज, सेठ श्री प्रकाश चंद जी महाराज, भगवन् श्री रामप्रसाद जी महाराज व पूज्य श्री रामचंद जी महाराज रहे। शिषय रत्न में गणाधीश श्री प्रकाशचंद जी महाराज, संघ नायक शास्त्री श्री पद्म चंद जी महाराज, कृपानाथ श्री शांति चंद्र जी महाराज, संघाधार श्री विनय चंद जी महाराज, बहुश्रुत श्री चंद्र मुनि जी महाराज व संघ संचालक श्री नरेशचंद जी महाराज आदि 29 साधूगण रहे। उन्होंने बताया कि महाराज श्री ने हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, जम्मू व राजस्थान में धर्म का प्रचार किया। वह हिन्दी, प्रकृतिक, संस्कृत, उर्दू, फारसी, पंजाबी, गुजराती व अंग्रजी भाषा के धनी थे। महाराज श्री का देवलोक गमन 76 वर्ष 21 दिन की आयु में 25 अप्रैल 1999 को शालीमार बाग दिल्ल ने हुआ। संयम पर्याय 57 वर्ष 3 मास 7 दिन का रहा। रविन्द्र जैन ने गुरु जी की विशेषताओं की जानकारी देते हुये बताया कि गुरु जी श्रमण निर्माता, जैन-जैनेतर ग्रंथों में अधिकारिक विद्वान, विनय-सेवा-वात्सल्य करुणा की प्रतिमूर्ति, अद्वितीय प्रवचनकर्ता, अद्भुत संघ अनुशास्ता, कवि हृदय, अप्रतिबद्ध विहारी, समाचारी के सुदृढ़ पालक, लक्षाधिक उपासकों के धर्माचार्य आदि संख्य-असंख्य विशेषताओं के स्वामी थे। उन्होंने गुरु वचनामृत के बारे में बताते हुये कहा कि संतों के चरणों से ज्यादा मूल्यवान उनका आचरण होता। अपने घर पर प्रतिठानों पर संत चरण की बजाय संतों का अचरण डलवाने से चमत्कार होता है। इस अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालू व पदाधिकारी उपस्थित रहे।